
देहरादून के रेंजर्स ग्राउंड में ग्राम्य विकास विभाग द्वारा आयोजित सरस मेले की दूसरी शाम जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण के नाम रही। इस सांस्कृतिक संध्या में लोक संस्कृति की जड़ों को पुनर्जीवित करते हुए प्रीतम भरतवाण ने अपने जागर और लोक गीतों के माध्यम से समां बांध दिया। दर्शकों ने उत्साहपूर्वक उनका स्वागत किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान लोक धुनों पर जमकर नाचे।
पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत अपने प्रसिद्ध जागर ‘राम गंगा नयोला देवतो शिव गंगा नयोला’ से की, जिसने कार्यक्रम की शुरुआत से ही माहौल को भक्तिमय बना दिया। इसके बाद, ‘चल मेरी सरुली’ और ‘किमसाड़ी हाट मा’ जैसे प्रसिद्ध लोक गीतों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन गीतों पर दर्शक अपनी जगह पर खड़े होकर झूम उठे और उत्तराखंड की लोक धुनों पर थिरकने लगे। भरतवाण की आवाज़ और उनके गीतों की जादूगरी ने हर किसी को उत्तराखंड की पारंपरिक संगीत धरोहर की ओर आकर्षित किया।
पशुपालन पर गोष्ठी का आयोजन:
सरस मेले में केवल सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का ही नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और आजीविका संवर्धन से जुड़े विभिन्न विषयों पर भी चर्चा की गई। दिन के समय पशुपालन और डेयरी विकास विभाग द्वारा एक विशेष गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें पशुपालन को बढ़ावा देने के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ। इस गोष्ठी का शुभारंभ मुख्य पशु चिकित्साधिकारी विद्या सागर कापड़ी ने किया।
गोष्ठी के दौरान, पशुपालन और डेयरी विकास के महत्व पर जोर दिया गया और बताया गया कि किस प्रकार ये क्षेत्र ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। विशेषज्ञों ने किसानों को पशुपालन से जुड़े आधुनिक तकनीकों और डेयरी उत्पादकता बढ़ाने के सुझाव दिए। गोष्ठी में भाग लेने वाले किसानों ने भी अपने अनुभव साझा किए और पशुपालन से जुड़े विभिन्न सवाल पूछे, जिनका समाधान विशेषज्ञों ने किया। यह चर्चा न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक संवृद्धि के लिए उपयोगी साबित हुई, बल्कि किसानों को अपने व्यवसाय में नई दिशा देने के लिए भी प्रेरित किया।
लोक संस्कृति और ग्रामीण विकास का संगम:
सरस मेला देहरादून में ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। यह मेला राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्राम्य विकास विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से ग्रामीण उत्पादकों और शिल्पकारों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का अवसर मिल रहा है। साथ ही, इस मेले में हर दिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शकों के सामने लाया जा रहा है।
मेले का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देना, ग्रामीण उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराना और स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को प्रोत्साहित करना है। प्रीतम भरतवाण जैसे लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने इस मेले की सांस्कृतिक समृद्धि में चार चांद लगा दिए हैं। दर्शकों ने इस सांस्कृतिक संध्या का भरपूर आनंद उठाया और उत्तराखंड की लोक धुनों और पारंपरिक संगीत का जादू हर किसी के दिल में बस गया।
पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने कहा, “उत्तराखंड की लोक संस्कृति को बढ़ावा देना और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है। सरस मेला जैसे मंच हमें अपनी संस्कृति को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं।”
इस सांस्कृतिक और ग्रामीण विकास के महोत्सव ने न केवल ग्रामीण उत्पादकों को अपनी आजीविका बढ़ाने का मौका दिया, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी नए सिरे से प्रस्तुत किया।