
उत्तराखंड के 102 नगर निकायों में होने वाले चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। 10 नवंबर को इन निकायों के चुनाव की अधिसूचना जारी की जानी थी, लेकिन अब इसके जारी होने पर संशय पैदा हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण की नियमावली पर अंतिम निर्णय का न होना बताया जा रहा है।
राज्य सरकार ने निकायों में ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वेक्षण तो पूरा कर लिया है और उसकी रिपोर्ट भी आयोग के पास है। इसके बावजूद, आरक्षण का फार्मूला तय न हो पाने की वजह से निर्वाचन आयोग अधिसूचना जारी नहीं कर पाया है। ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए नियमावली पर मुहर न लगने से चुनावी प्रक्रिया में रुकावट आ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया बिना आरक्षण नियमावली के आगे नहीं बढ़ सकती, और जब तक आरक्षण के नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया जाता, तब तक अधिसूचना की घोषणा नहीं की जा सकती।
इस मामले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार जानबूझकर निकाय चुनाव को टाल रही है। धस्माना का दावा है कि सरकार चुनाव से डर रही है और अपनी हार की संभावना को देखते हुए चुनाव की तारीख लगातार बढ़ा रही है। उन्होंने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि वह संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों का दुरुपयोग कर रही है। ये संशोधन स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने के लिए किए गए थे, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इनका सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है।
धस्माना ने अपने बयान में यह भी कहा कि सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और समय पर चुनाव कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से निकाय चुनावों में देरी करना यह साबित करता है कि राज्य सरकार अपने राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दे रही है, न कि जनता के अधिकारों को। उनके मुताबिक, सरकार का यह रवैया लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है और इससे जनता में आक्रोश बढ़ रहा है।
उत्तराखंड में निकाय चुनावों को लेकर इस प्रकार का असमंजस पहले भी देखा गया है। पिछले वर्षों में भी ओबीसी आरक्षण के नियमों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसके चलते चुनाव में देरी हुई थी। अब एक बार फिर इसी मुद्दे को लेकर चुनाव प्रक्रिया पर प्रश्न चिह्न लग गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को जल्द से जल्द ओबीसी आरक्षण की नियमावली को अंतिम रूप देना चाहिए ताकि चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ सके और लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखा जा सके। राज्य में निकाय चुनावों का समय पर न होना सरकार की छवि पर नकारात्मक असर डाल सकता है, और विपक्ष इसे एक प्रमुख मुद्दा बना सकता है।
: निकाय चुनावों में हो रही इस देरी से जनता में असंतोष की भावना बढ़ रही है। चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और समय पर आयोजित करना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि आरक्षण से जुड़े नियम जल्द न बनाए गए, तो यह स्थिति सरकार के लिए और भी मुश्किलेंखड़ी कर सकती है।