
दिनांक 29 सितंबर 2024 को, ऋषिकेश में “मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति” द्वारा आयोजित स्वाभिमान महारैली में हजारों उत्तराखंडियों ने भाग लिया। इस रैली का उद्देश्य उत्तराखंड के निवासियों के अधिकारों की रक्षा और भू कानून में संशोधन की मांग को लेकर एकजुटता दिखाना था।
महारैली में उत्तराखंड क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष ललित श्रीवास्तव ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया और अपने संबोधन में कहा कि जल, जंगल, जमीन और नौकरियों पर पहला अधिकार उत्तराखंड के मूल निवासियों का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अधिकार को लेकर आज पूरे उत्तराखंड के लोग एकजुट हो गए हैं और इस संघर्ष में उनका पूरा समर्थन है। इस एकजुटता और संघर्ष ने इस महारैली को सफल बनाया है।
ललित श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में यह भी स्पष्ट किया कि भू कानून और मूल निवास के मुद्दे पर कुछ लोग गलतफहमियां फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि भू कानून और मूल निवास लागू होने से बाहरी लोगों को राज्य से भगाया जाएगा या उनके खिलाफ हिंसा होगी। श्रीवास्तव ने इस भ्रम को पूरी तरह गलत बताया और कहा कि इस तरह की अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है।
श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि भू कानून और मूल निवास लागू होने से केवल उन लोगों को असुविधा हो सकती है, जो बड़े व्यापारी और संपन्न लोग हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन लोगों के पास सिर्फ एक बिस्सा या 100-150 गज में बना हुआ घर है, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को इस लड़ाई में साथ देना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।
“हम सब उत्तराखंड के निवासी हैं, लेकिन जल, जंगल, जमीन और नौकरियों पर पहला अधिकार उन लोगों का होना चाहिए, जो इस राज्य के मूल निवासी हैं,” श्रीवास्तव ने कहा। उन्होंने यह भी जोर दिया कि इस आंदोलन का उद्देश्य किसी के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह हर उत्तराखंडी के अधिकारों की रक्षा के लिए है।
महारैली में शामिल हुए लोगों ने उत्तराखंड सरकार से मांग की कि एक सशक्त भू कानून और मूल निवास की व्यवस्था जल्द से जल्द बनाई जाए, जिससे हर उत्तराखंडी को उसका हक मिल सके। रैली के दौरान लोगों ने जोरदार नारेबाजी की और अपने हक और अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
स्वाभिमान महारैली ने उत्तराखंड के लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार उत्तराखंडियों का है और इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।