
उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं में गहराई से जड़े पर्वों में से एक, इगास, मंगलवार को मुख्यमंत्री आवास, देहरादून में सादगी के साथ मनाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी पत्नी के साथ पूजा-अर्चना और सुंदरकांड का पाठ कर प्रदेश में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की। इस अवसर पर उन्होंने भैलो पूजन करते हुए पारंपरिक खेल, भैलो, का भी प्रदर्शन किया और राज्यवासियों को इगास की शुभकामनाएं दीं। यह पर्व उत्तराखंड की पुरानी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आगे बढ़ाने के संकल्प का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हमें अपनी लोक परंपराओं को जीवित रखना है और इसके महत्व को नई पीढ़ी तक पहुँचाना है। इगास का पर्व, जो दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है, उत्तराखंड के गांवों और पर्वतीय क्षेत्रों में प्रमुखता से मनाया जाता है। इसे दीपावली के दूसरे चरण के रूप में भी देखा जाता है, जहां गांववासी अपने घरों को सजाते हैं और भैलो (जलती हुई मशालें) के साथ खेलते हैं।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने ढोल और दमाऊ का वादन भी किया, जो कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। ढोल-दमाऊ की धुनों के साथ ग्रामीण परिधान में सजे मुख्यमंत्री ने जब पारंपरिक भैलो खेला, तो यह प्रतीक था कि राज्य सरकार अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजने के लिए दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने कहा कि यह पर्व हमारी लोक संस्कृति की पहचान है, और इस पहचान को बरकरार रखना हम सभी का कर्तव्य है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मौके पर प्रदेशवासियों को इगास की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने उत्तराखंड से अपने विशेष लगाव का जिक्र करते हुए कहा कि इगास जैसे पर्व राज्य की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड के लोक पर्वों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने और उनकी महत्ता को समझाने में भी योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति देश के अन्य हिस्सों के लिए भी प्रेरणादायक है।
इगास पर्व को और अधिक लोकप्रिय बनाने और जन-जन तक पहुंचाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से इसे सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि यह निर्णय राज्य की युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का एक प्रयास है। इसके साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए आगे आएं।
उत्तराखंड में इगास का पर्व न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने, परिवारों को जोड़ने और अपनी जड़ों को पहचानने का माध्यम भी है। आज के आधुनिक दौर में, जब लोग अपने पारंपरिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे पर्व हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाते हैं। इगास का पर्व ग्रामीण परिवेश, पारिवारिक एकता, और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है।
मुख्यमंत्री ने इगास पर्व की सार्थकता पर बल देते हुए कहा कि यह पर्व हमारी सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा है और हमें इसे उसी उत्साह और जोश के साथ मनाना चाहिए। इस लोकपर्व के माध्यम से उत्तराखंड की लोकसंस्कृति और परंपराओं को जन-जन तक पहुंचाना राज्य सरकार का लक्ष्य है।
इगास के इस मौके पर देहरादून से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों तक राज्य भर में उत्साह का माहौल था। लोगों ने अपने घरों को सजाया, भैलो का आयोजन किया और पारंपरिक पकवान बनाए। यह पर्व न केवल एक उत्सव है, बल्कि राज्य के लोगों के लिए एक विशेष अनुभव है, जो उनकी जड़ों को संजोए रखने की प्रेरणा देता है।
इगास पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, जो राज्यवासियों के मन में गर्व और अपनेपन का भाव जागृत करता है।